Introduction:
आज कर्नाटक की सर्कार ने अपने कैबिनेट में ये फैसला किया कि लिंगायत समुदाय को हिन्दू धर्म से अलग धर्म का दर्जा दिया जायेगाQuestion: कौन है लिंगायत और कर्नाटक की राजनीति में क्या importance है
लिंगायत समाज कर्नाटक प्रदेश में १८ परसेंट है जो सीधे रूप से १०० सीट पे अपना दमखम रखते हैं और यह मांगे बहुत समय से चली आ रही थी जैसे की कुछ महीने में चुनाव होने है तो प्रदेश की सर्कार ने पोलिटिकल एडवांटेज के लिये यह बड़ा फैसला लिया हैं
प्रदेश की मुख्य विपक्षी पार्टी बीजेपी इसके पक्ष में हिंदू धर्म से अलग करने की मांग का विरोध हमेशा से करती आ रही थी और हिंदू धर्म से अलग करने की मांग का विरोध करती रही है। इससे यह माना जा रहा हैकि आगमी कर्नाटक के विधानसभा चुनावों में भाजपा का वोट बैंक सत्ताधारी दल की तरफ खिसकेगा। इसलिए कर्नाटक सरकार के इस फैसले को राजनीति से प्रेरित ही कहा जाएगा।
History of Lingayat:
कहा जाता है कि 12वीं सदी में समाज सुधारक बसवन्ना ने हिंदुओं में जाति व्यवस्था की कुरीतियों के खिलाफ आंदोलन छेड़ा था। और उनके राह और माने वाले लोग ही लिंगायत कहे जाते हैं। जैसा की बहुत जगह ये कही जाती है की लिंगायत और वीरशैव एक ही हैं। वहीं लिंगायतों का मनना है कि वीरशैव का अस्तित्व बसवन्ना से भी पहले था। वीरशैव भगवान शिव की पूजा करते हैं। लिंगायत शिव की पूजा नहीं करते बल्कि अपने शरीर पर इष्टलिंग धारण करते हैं। लिंगायत मूर्तिपूजा के ख़िलाफ़ हैं। यहाँ तक कि दफनाने के शवाधान प्रणाली प्रचलन में हैं।
Demand:
लिंगायत समुदाय वर्षों से हिंदू धर्म से अलग होने की मांग करता रहा है। समुदाय की मांगों पर विचार के लिए कर्नाटक सरकार ने नागमोहन दास समिति गठित की गई थी। समिति ने लिंगायत को अलग धर्म का दर्जा देने की बात कही हैं। राज्य कैबिनेट ने समिति की सिफारिशों को स्वीकार कर लिया है। कर्नाटक ने इस प्रस्ताव को अंतिम स्वीकृति के लिए केंद्र के पास भेजा है।अलग धर्म का दर्जा देने का अंतिम अधिकार केंद्र सरकार के पास है। राज्य सरकारें इसको लेकर सिर्फ अनुशंसा ही कर सकती हैं।
केंद्र के पास अंतिम अधिकार:
अलग धर्म का दर्जा देने का अंतिम अधिकार केंद्र सरकार के पास है। राज्य सरकारें इसको लेकर सिर्फ अनुशंसा कर सकती हैं। लिंगायत को अलग धर्म का दर्जा मिलने पर समुदाय को मौलिक अधिकारों (अनुच्छेद 25-28) के तहत अल्पसंख्यक का दर्जा भी मिल सकता है।
- इसके बाद लिंगायत समुदाय अपना शिक्षण संस्थान भी खोल सकता है। फिलहाल मुस्लिम, सिख, ईसाई, बौद्ध, पारसी और जैन को अल्पसंख्यक का दर्जा हासिल है।
Conclusion:
वोट बैंक की राजनीति, सत्ता लोलुपता के चलते समाज को बांटने का यह राजनीतिक भावी समाज के लिए अत्यंत घातक सिद्ध होने वाला हैं। गेंद संघ सरकार के पाले में, जरूरत है एक प्रभावी निर्णय की जो किंचित मात्र भी राजनीति से प्रेरित न हो।
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